सौतन का रिश्ता - डाह और प्यार
जब हम परिवार के बारे में सोचते हैं तो हमारे ख्याल में पति, पत्नी और बच्चे आते हैं। यह आधुनिक भारतीय समाज की तस्वीर है। किन्तु कभी बहु विवाह एक स्वीकृत तथा मान्य प्रणाली थी। समृद्ध व्यक्ति अधिक पत्नियाँ रखना एक गौरव की बात समझते थे। इस्लाम में तो चार पत्नियाँ रखना जायज है। प्राचीन तथा मध्यकालीन भारत में भी बहु पत्नी की प्रथा थी। रामायण में दशरथ की तीन रानियाँ थी। महाभारत के प्रमुख नायक कृष्णा की अनेक रानियाँ थी। जिसकी जितनी पत्नी होती इउस्क उतना ही बड़ा रुतबा माना जाता। यह एक धारणा है की बहु पत्नी प्रथा नैसर्गिक है जबी एक पत्नी प्रथा बनावटी रूप से लादी गयी है। इस धारणा को इस तथ्य से बल मिलते है की कई पुरुष अभी भी विवाहेतर संबंधो के लिए लालायित रहते है।
एक पुरुष की पत्नियों का रिश्ता सौतन या सह पत्नी का होता है। यह रिश्ता अत्यंत विचित्र है। सौतन एक जहाज में यात्रा करने वाले सह यात्रियों की भांति है। सौतिया डाह प्रिसद्ध है। कोई स्त्री मिटटी की बनी सौतन भी पसंद नहीं करती। फिर एक हाड मांस की जीती जागती सौतन की कल्पना ही एक दुस्वप्न से कम नहीं है। लेकिन यह स्त्रियों की मजबूरी थी। इस्लाम में तो यह प्राविधान है की एक पति को सभी पत्नियों का सामान ख्याल रखना चैहिये। यह सिद्धांत में ठीक है। लेकिन उतना व्यवहारिक नहीं है। जैसे एक व्यकि पुरानी खटारा कार के मुकाबले लेटेस्ट चमचमाती कार को पसंद करता है वैसे ही वह नयी पत्नी को पसंद करेगा।
यह मुमकिन है की एक पति सभी पत्नियों को समान सुविधा तथा आवास, वस्तु आदि प्रदान करे। किन्तु जहाँ सेक्स् तथा शारीरिक सम्बह्द की बात आती है, एक नयी तथा लेटेस्ट कम आयु की पत्नी का कोई जवाब नहीं। राजा दशरथ भी छोटी रानी कैकेयी से अधिक स्नेह करते थे। जब बहुत पत्नी होती हैं, तो उनमे सामान व्यवहार कठिन होता है। इसके अतरिक्त सौतेले बच्चों के कारण भी मन मुटाव होता है . यहाँ ध्रुव का जिक्र करना मुनासिब होगा। ध्रुव को उसकी सौतेली माता ने अपने पिता की गोद में बैठने से मना किया। इस सौतेले व्यवहार पर उसकी सगी माँ ने उसे ईश्वर की और अपना ध्यान करने को कहा। ध्रुव एक अत्यंत भक्त हुआ। आकाश में आज भी वह एक चमकीले तारे के रूप में देखा जाता है।
सौतनों में इर्ष्या स्वाभाविक है। सौतिया डाह जग प्रसिद्ध है। किन्तु यह भी एक सचाई है की उन्हें एक साथ एक पति के साथ ही रहना है। इसलिए उनमे एक अपनापा भजी हो जाता है। उनकी स्थिति एक मालिक के मजदूरों या एक टीचर के स्टूडेंट की जैसी ही होती है। उनके हित तथा समस्या एक ही होती हैं। इसलिए वे सहेली की तरह रहने लगाती हैं। आपसी सहयोग उन्हें घर के सञ्चालन, बच्चों की देखभाल आदि में लाभदायक होता है। कुछ परेशानी उन्हें पति द्वारा भेद भाव के कारन कुछ समय के लिए ही होती है। पूर्व विवाहित पत्नियाँ यह सनझ लेती हें की नयी नवेली पत्नी में अधिक आकर्षण होता है। कभी वे भी नयी थी। शीघ्र ही नयी भी पुरानी हो जाईगी और फिर पति एक और विवाह कर लेगा। पुरानी पत्नी नयी के लिए गाइड की तरह भी होती है। परस्पर सम्मान और भाई चारा इर्ष्या का स्थान ले लेता है और घर अच्छी तरह चलता है। इसमें कोई संदेह नहीं की समय बीतने पर पत्नियों में परिपक्वता आ जाती है । कभी कभार गंभीर विषयों को लेकर अप्रिय स्थिति हो सकती है। सम्पति का उत्तराधिकार एक ऐसी समस्या है। संतान के हित को लेकर भी समस्या हो सकती है। महाभारत में शांतनु का सत्यवती से विवाह इस शर्त पर हुआ था की उसका सगा पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। इसे सुनिश्चित करने के लिए शांतनु के ज्येष्ठ पुत्र ने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय लिया। इसे भीष्म प्रतिज्ञा कहा जाता है।
Like it on Facebook, Tweet it or share this article on other bookmarking websites.